उत्तराखंड में दीपावली उत्सव
उत्तराखंड में दीपावली उत्सव आने से
पूर्व कई महीने पहले से इस पर्व कि तेयंरियां
में जुट जाते हैं | सभी लोगो में एक अलग सा उत्साह देखने को मिलता है |
बहुत साल पहले हम लोग अपने गांवों में
दीपावली उत्सव अपनी प्राचीन परम्परा के अनुसार बनाते थे | उस समय हम धान के भूसी को
मिट्टी तेल के सांथ मिश्रण बना कर घरों के आँगन एवं दीवारो में इसके दीये बनाके जलाया
करते थे | अड़ोस पड़ोस और रिश्तेदारों में खिल ,बतासे, खिलौने आदि बांटते थे और आपस में
गले मिलते थे |
दीपावली का उत्सव पुरे १२ दिन एवं रात
तक अपने अपने नियम अनुसार त्यौहार एवं खाना होता था जिसमे बेडू लघेड़ , बड़, खीर , सूजी,
एयं घी , दही आदि को घर पे बनाते और खाते थे |
लेकिन आज का दिवाली उत्सव धान भूसी
युक्त नहीं है | लेकिन क्यों ?
क्योंकि आज गांवों में बिजली के लाइट
प्रज्वलित हो रहे हैं और बम , फाटकों का भी
जोर शोर से इस्तिमाल हो रहा है | अब हमें वो
पुरानी दिवाली देखने को नहीं मिलती क्योंकि अब गांवों में लोगो के बीच वो भाईचारा नहीं
रहा जो कि सही नहीं है |
सभी को में आंखिर में कहना चाहूंगा
कि सभी अपनी पुरानी परम्परा और नए तरीकों को सांथ लेके इस पर्व को मनाएं | और आंखिर
में मेरी ओर से सभी को दिवाली कि बहूत बहूत शुभकामनाएं|
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